ज्योतिष को विज्ञान#1 के चश्मे से
नमस्कार दोस्तों! ज्योतिष और विज्ञान को विज्ञान के चश्मे से पढकर शायद आपको आश्चर्य हो क्योंकि वर्तमान शिक्षा पद्धति और कम्प्यूटर युग के आने के कारण ज्योतिष को अन्धविश्वास के नजरिये से देखा जाता है।
आपको यह बात तो अवश्य ही मालूम होगी कि हर विषय के साथ कुछ सकारात्मक और कुछ नकारात्मक बातें जुड़ी रहती हैं। और यही बात ज्योतिष के सन्दर्भ में भी फिट बैठती है।
इस आर्टिकल में हम ज्योतिष विज्ञान के वैज्ञानिक पहलुओं के साथ उसके नकारात्मक पक्ष को देखने वाले हैं। इसके अलावा ज्योतिष विज्ञान जीवन के सभी आयामों को कैसे प्रभावित करता है उसको भी हम जानने वाले हैं।
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Toggleआगे बढ़ने से पहले दो शब्द (Preface)
मान लीजिए आपको भारत से अमेरिका जाना है। और उसके लिये आप फ्लाइट पकड़ने के लिये टिकट कराते हैं। आपकी फ्लाइट का एक नियत समय होगा, उसी समय पर यदि आप एयरपोर्ट पर पहुँचते हैं तभी आपको आपकी वह फ्टाइट मिलती है जिसका आपने टिकट कटाया है या खुद इण्टरनेट पर जाकर बुक किया है। आप किसी कारणवश एयरपोर्ट पर यदि फ्लाइट ऑथिरिटी द्वारा तय समय में नहीं पहुँचते हैं तो आपकी वह फ्लाइट मिस हो जायेगी यदि वह लेट नहीं हुई तो।
इसका अर्थ क्या है?
इसका अर्थ है कि आप अमेरिका जाने के लिये फ्लाइट ऑथॉरिटी द्वारा कण्ट्रोल किये जा रहे हैं। आपको चाहे जो भी काम क्यों न हो, भले ही वह कितना भी जरूरी काम क्यों न हो आपको सभी कामों को छोड़कर उस फ्लाइट को पकड़ने के लिये उस नियत जगह पर नियत एयरपोर्ट पर जाना ही होगा।
और उसके लिये आप क्या करते हैं?
उसके लिये आप अपने हाथ पर बँधी हुई घड़ी को देखते हैं। अपने हाथ लेकर अपने स्मार्टफोन को देखते हैं और उससे आपको नियत समय का ज्ञान होता है। आप नियत समय से पहले ही एयरपोर्ट पर जा पहुँचते हैं। और अपनी फ्लाइट को पकड़ लेते हैं।
ज्योतिष विज्ञान तुलना (Similitude of Astrology)
वैसे तो ज्योतिष की तुलना किसी और शास्त्र से नहीं की जा सकती है लेकिन विषय को आपकी सुविधा और ज्योतिष विज्ञान की समझ आसानी से हो जाये, इस उद्देश्य से इस आर्टिकल में जगह-जगह पर तुलना और अन्य विज्ञान का सहारा लेकर बताया गया है।
समय की माप (Measurement of Time)
हम समय की माप करते हैं। समय को देखते हैं। उसके अनुरूप ही कोई कार्य करते हैं। ज्योतिष विज्ञान का विकास भी इसी उद्देश्य से किया गया है। बस अन्तर इतना सा है कि धरती पर आप भौतिक बातों को अपनी घड़ी या स्मार्ट डिवाइस के जरिये समय का ज्ञान करते हैं जबकि ज्योतिष विज्ञान सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की आदि से अन्त तक की काल गणना है। और उस काल गणना को किया हमारे ऋषियों ने, उन तत्ववेत्तावों ने जिनको काल का ज्ञान था।
किसी न किसी रूप में और किसी न किसी वजह से वह काल ही है जो आपको, मुझको और हम सबको कण्ट्रोल कर रहा है। और उसी काल को जानने की विद्या है ज्योतिष जिसको हम इस आर्टिकल में जानने की कोशिश करेंगे। इस आर्टिकल में जानेंगे कि ज्योतिष महत्वपूर्ण क्यों है? ज्योतिष से जानेंगे कि काल यानि की टाइम कैसे हमको प्रभावित करता है? ज्योतिष विज्ञान से जानेंगे कि काल हमको कैसे कण्ट्रोल करता है? और आज आधुनिक विज्ञान के होने के बाद भी ज्योतिष महत्वपूर्ण कैसे बना ही हुआ है? हम यह भी जानेंगे कि ज्योतिष को किस दशा में आपको अस्वीकार कर देना है?
समय हम सभी को Control करता है (Time controls us all)
पूरे ब्रह्माण्ड में चाहे वह निर्जीव हो अथवा सजीव हो सब कुछ काल के प्रभाव में है | और काल ही सबको कंट्रोल करता है | किसी न किसी रूप में और किसी न किसी वजह से वह काल ही है जो आपको, मुझको और हम सबको कण्ट्रोल कर रहा है। और उसी काल को जानने की विद्या है ज्योतिष जिसको हम इस आर्टिकल में जानने की कोशिश करेंगे। इस आर्टिकल में जानेंगे कि ज्योतिष महत्वपूर्ण क्यों है? ज्योतिष से जानेंगे कि काल यानि की टाइम कैसे हमको प्रभावित करता है? ज्योतिष विज्ञान से जानेंगे कि काल हमको कैसे कण्ट्रोल करता है? और आज आधुनिक विज्ञान के होने के बाद भी ज्योतिष महत्वपूर्ण कैसे बना ही हुआ है? हम यह भी जानेंगे कि ज्योतिष को किस दशा में आपको अस्वीकार कर देना है?
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड (Universe) से हमको क्या लेना है?
आपको जानकर हैरानी होगी कि आधुनिक विज्ञान इस बात को मानता है और पश्चिम के लोग जिनको विकसित सभ्यताएँ आप कहते हैं वह इसी बात को किसी और रूप में डिफाइन करता है। ज्योतिष विज्ञान हो, अध्यात्म विज्ञान हो अथवा आधुनिक भौतिक विज्ञान हो, खगोल विज्ञान हो वह यह जानने की कोशिश करते हैं कि हम कैसे पैदा हो गये? धरती पर जीवन और जीवन के पैदा होने के लिये जरूरी चीजें कैसे आ गईं? तो ज्योतिष विज्ञान उन्हीं ग्रहों के सूक्ष्म प्रभावों को देखता है और विज्ञान भौतिक प्रभावों को देखकर उसका निर्णय लेता है। विज्ञान बताता है कि हम स्टार अथवा तारों और सटीक होगा सूर्य के बच्चे हैं। जिसका अर्थ है कि सूर्य हमारा पिता है और ज्योतिष में सूर्य को पिता ही कहा गया है। सूर्य से पिता को देखते हैं।
विज्ञान की नजर से सूर्य (Star) हमारा पिता क्यों है?
हमारे अनन्त ब्रह्माण्ड में एक खास प्रक्रिया स्टार न्यूक्लियोसिंथेसिस होती है। इस खास प्रक्रिया में पृथ्वी पर जीवन पैदा करने के लिए जरूरी तत्व बन जाते हैं। इन जरूरी तत्वों में कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और अन्य तत्व अथवा पदार्थ हो सकते हैं। यह प्रक्रिया तारों के कोर या केन्द्र के भीतर होती है, जहां हल्के तत्व परमाणु संलयन प्रतिक्रियाओं से गुजरते हैं, जिससे भारी तत्वों का निर्माण होता है। खगोल भौतिकी और ब्रह्मांड विज्ञान में स्टार न्यूक्लियोसिंथेसिस एक खास प्रक्रिया को बताया गया है। इस प्रक्रिया के अध्ययन से हमको पता चलता है कि तारों के भीतर तत्वों को संश्लेषित किया जाता है और बाद में तारकीय हवाओं, सुपरनोवा विस्फोटों और ग्रहों के निर्माण जैसी प्रक्रियाओं के माध्यम से ब्रह्मांड में अन्य ग्रहों, पिंडों, जीवों आदि में सूक्ष्म रूप में अरबों-खरबों साल से जा रही हैं | और उनका प्रभाव होता है| उससे ब्रह्माण्ड प्रभावित होता हैं जो आज के विज्ञान की बात है तो ज्योतिष विज्ञान ने इसी बात को सृष्टि के आदि में ही कह दिया जबकि उनके पास कोई मशीन नहीं थी |
खगोल भौतिकी (Astrophysics)
खगोल भौतिकी (Astrophysics) तारों और अन्य खगोलीय पिंडों की भौतिक प्रकृति और खगोलीय प्रेक्षणों की व्याख्या के लिए भौतिकी के नियमों और सिद्धांतों का विज्ञान है|
ब्रह्माण्ड विज्ञान (Cosmology)
ब्रह्माण्ड विज्ञान (Cosmology) कॉस्मोलॉजी ब्रह्माण्ड के निर्माण प्रक्रिया को समझने का विज्ञान है|
स्टार न्यूक्लिओसिंथेसिस(Star Nucleosynthesis)
स्टार न्यूक्लिओसिंथेसिस (Star Nucleosynthesis)ब्रह्माण्ड में तारों में केंद्र में होने वाली एक ख़ास प्रक्रिया जिसमें हल्के परमाणु भारी कणों में बदल जाते हैं और विभिन्न प्रकार के तत्व या पदार्थ बन जाते हैं उसको स्टार न्यूक्लिओसिंथेसिस कहते हैं|
ब्रह्माण्ड के साथ हमारा गहरा सम्बन्ध (Universal Deep Connection)
हमारे शरीर में परमाणु विभिन्न तत्वों से बने हैं। उन परमाणुओं में से कई अरबों साल पहले तारों के कोर में संश्लेषित किए गए थे। उदाहरण के लिए, ऑक्सीजन जिसको हम सांस खींचते समय अपने शरीर में अपने फेफड़ों द्वारा सोख लेते हैं। अथवा हमारे शरीर की कोशिकाओं में कार्बन, हमारी हड्डियों में कैल्शियम आदि। ये सभी तत्व स्टार न्यूक्लियोसिंथेसिस के माध्यम से बनाए गए थे। कार्ल सागन ने बताया कि सच में देखा जाये तो हम स्टारडस्ट से बने हैं। यह विचार ब्रह्मांड के साथ हमारे गहरे संबंध को बताता है और ब्रह्मांड के साथ हमारी उत्पत्ति के विषय में भी बताता है।
कार्ल सेगन (Carl Edward Sagan) कौन हैं?
कार्ल सेगन एक प्रसिद्ध खगोलशास्त्री (Astronomer)और खगोल रसायनशास्त्री (Astrochemist) थे जिन्होंने खगोल शास्त्र (Astronomy)खगोल भौतिकी (astrophysics)और खगोल रसायनशास्त्र (Astrochemistry) को लोकप्रिय बनाया। इन्होंने पृथ्वी से के अलावा ब्रह्माण्ड में जीवन की खोज करने के लिए सेटी (Search for Extra Terrestrial Intelligence) नामक संस्था की स्थापना भी की। इन्होंने अनेक विज्ञान संबंधी पुस्तकें भी लिखी हैं।
आपसे प्रश्न?
आप इस बात से अब तो सहमत हो गये होंगे कि ज्योतिष विज्ञान की बात और विज्ञान की बात खरी कहाँ तक है।
ब्रह्माण्ड से जीव-जंतुओं और पेड़-पौधों का सम्बन्ध (Universal Connection)
हमारी तरही ही जीव और जन्तुओं में भी वही सब पदार्थ अथवा तत्व पाये जाते हैं। जिससे यह बात जावनरों पर भी लागू होती है। पेड़-पौधों में भी उपरोक्त तत्व होते हैं जिसको मैंने अभी बताया जो उनकी वृद्धि और विकास के लिए आवश्यक हैं। जैसे कि कार्बन पेड़ों और पौधों में पाए जाने वाले कार्बनिक अणुओं का एक महत्वपूर्ण घटक सेलूलोज है। इनमें पाया जाने वाला ऑक्सीजन और नाइट्रोजन जैसे तत्व, जो प्रकाश संश्लेषण और अन्य जैव रासायनिक प्रक्रियाओं के लिए जरूरी हैं।
ब्रह्माण्ड से हमारा सम्बन्ध है कि नहीं?
कार्ल सेगन द्वारा लिखित बुक कॉसमॉस, नील डेग्रसे टायसन द्वारा लिखित बुक एस्ट्रोफिजिक्स फॉर पीपल इन ए हरी| वेबसाइट्स-नासा और स्पेस डॉट कॉम की वेबसाइट जिसमें Star Nucleosynthesis और ब्रह्मांड में तत्वों की उत्पत्ति से संबंधित लेख, चित्र आदि शामिल है।
यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे (What is in the body is in the universe)
वेदों में सम्पूर्ण जगत् को एक इकाई माना गया है। और इसी एक इकाई का एक बहुत ही छोटा सा हिस्सा मनुष्य भी है। वेदों में कहा भी गया है यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे जिसका अर्थ है कि जो इस ब्रह्माण्ड में व्याप्त है वहीं इस शरीर में भी व्याप्त है।
गति का सापेक्षता सिद्धान्त(Relativity Theory of Motion)
अल्बर्ट आइन्सटाइन की गति का सापेक्षता सिद्धान्त से हमको पता चलता है कि किसी गतिशील वस्तु के ऊपर या उसके भीतर यदि कुछ वस्तुएँ हैं तो वह भी गतिशील हो जाती हैं। उसकी गति का प्रभाव उनके ऊपर भी पड़ता है। जितनी तेजी से मुख्य वस्तु चल रही है उसी चाल से वह भी उसके साथ ही चल रही होती हैं। तो क्या उन वस्तुओं पर उसके चलने से हुए बदलाव और प्रभाव नहीं पड़ रहे होंगे। आप कॉमेण्ट सेक्शन में नीचे बताएँ?
ज्योतिष गति का सापेक्षता सिद्धान्त(Relativity Theory of Motion in Astrology)
यह सिद्धान्त और अल्बर्ट आइन्स्टाइन बहुत ही समय बाद दुनिया के सामने आया लेकिन ज्योतिष विज्ञान को यही बात आदि से ही ज्ञात थी। ज्ञात होने के कारण ही ज्योतिष विज्ञान को मनुष्य पर उनके प्रभावों की व्याख्या वृहत् रूप में की गई है। इसमें एक-एक बात को बताया गया है कि कैसे किस ग्रह के किस स्थान पर आने से पृथ्वी पर उसका क्या-क्या प्रभाव पड़ेगा और उससे मनुष्य कैसे प्रभावित होगा। और आज हम वैज्ञानिक रूप से भी जानते हैं कि पूरा का पूरा ब्रह्माण्ड गतिशील है और इसमें शामिल सभी तारें और ग्रह नक्षत्र चल रहे हैं। उनका प्रभाव भी पड़ रहा है।यह बात अलग है कि अलबर्ट आइंस्टीन ने इसको गति की सापेक्षता का सिद्धांत कहा और ज्योतिष इसको कुछ और कहता है | आप अंग्रेजी समझ रहे हैं क्योंकि इसको आपने खूब प्रयास और मेहनत से पढ़ा है लेकिन संस्कृत नहीं |
आइये जानते हैं कि ज्योतिष विज्ञान हमारे लिये क्यों जरूरी है? (Importance of Astrology)
लेकिन किसी भी बातों को जानने के पहले उसके सिद्धान्तों और उसके इतिहास को जानना जरूरी होता है। क्योंकि अगर इससे सम्बन्धित बातों, उनकी परिभाषाओं को हम नहीं जानते हैं तो अर्थ का अनर्थ निकाल सकते हैं। इसलिये पहले संक्षिप्त में ही ज्योतिष विज्ञान के कुछ आधारभूत बातों को बताने का छोटा सा प्रयास मैंने किया है।
सभी प्रकार के ज्ञान का स्रोत वेद हैं (Main Source Of Knowledge)
वेदों को परमात्मा की वाणी माना जाता है|सभी प्रकार के ज्ञान का मूल स्रोत वेदों को माना गया है | जैसा कि ऊपर चित्र में दिखाया गया है कि वेदों से ही छह मुख्य विद्याओं या शास्त्रों की उत्पत्ति हो रही है|
- शिक्षा
- कल्प
- व्याकरण
- निरुक्त
- छन्द
- ज्योतिष
ज्योतिष के तीन विभाग (Three Section of Astrology)
ज्योतिष के तीन विभाग हैं सिद्धान्त, संहिता और होरा | इन तीन शाखाओं से और बहुत सी छोटी-बड़ी शाखाओं का विकास होता गया | ज्योतिष की शुरुवात प्रारम्भ में यहीं से होती है |
ज्योतिष के सिद्धान्त(Astrological Theory)
सिद्धान्त-ज्योतिष विज्ञान के जिस भाग में त्रुटि से लेकर प्रलय काल तक की गई काल गणना, मानव-दैव-जैव-पैत्र-नाक्षत्र-सौर-सावन-चन्द्र तथा ब्रह्मादि नवविध काल मानों का सांगोपांग/अच्छी तरह से विस्तृत रूप में व्याख्या की गई है या किया जाता है सिद्धान्त विभाग/सेक्शन कहा गया। इसमें ग्रहों के मध्य-मन्दस्फुटगति-स्थित्यादि का निरूपण, व्यक्ताव्यक्त गणित, त्रिकोणमितिय गणितोपपादन, तत्सम्बन्धी प्रश्नों का सोत्तर संकल, वेधोपयुक्त यन्त्रादि विषयों का निरूपण किया गया है। सिद्धान्त स्कन्ध में पाटी गणित, बीजगणित, रेखागणित, त्रिकोणमिति, ज्यामिति, चलनकलन, गोलाध्याय, करण ग्रन्थ, तन्त्र ग्रन्थ,चापीयत्रिकोणमिति, गोलीयरेखागणित, प्रतिभाबोधकम, यन्त्रनिर्माण, वेधशाला, श्रृंगोन्नति आदि प्रमुख हैं।
सिद्धः अन्ते यस्य सः सिद्धान्तः(A principle that is perfect in the end)
सिद्धान्त का अर्थ ही है सिद्धः अन्ते यस्य सः सिद्धान्तः हिन्दी में अन्त में जो सिद्ध हो जाये वह सिद्धान्त है।
ज्योतिष के संहिता (Astrological Code)
संहिता-ग्रहों की गतिशीलता और उनके प्रभावों से शुभ अथवा अशुभ फलों का मनुष्य पशु, पक्षी, वृक्ष, कीटादियों पर धरती हिसाब से व्याख्या करना, फलाफल को विस्तृत रूप में बताने को संहिता स्कन्ध/संहिता सेक्शन अथवा संहिता विभाग कहा जाता है। इस सेक्शन में प्राकृतिक और आकाशीय घटनाओं का अध्ययन किया जाता है। इस शास्त्र में भूशोधन, दिक्शोधन, शल्योद्धार, गृहोपकरण, गृहारम्भ, गृहप्रवेश, वास्तु, दकार्गल, समर्घ-महर्घ, प्राकृतिक आपदा, वृष्टि, जलाशय निर्माण, ग्रहों के उदयास्त का फल, ग्रहचार आदि समस्त प्रकल्प इसी स्कन्ध के अन्तर्गत आते हैं। संहिता स्कन्ध में सामूद्रिक, वास्तु, अद्भुत्ोत्पात, शकुन, शान्ति, स्वर, ग्रहाचार, शुभाशुभ, भूशोधनादि, पल्लीपतन विचार, स्वप्न, अंगस्फुरण विचार, रमल आदि आते हैं।
ज्योतिष में होरा (Astrological HORA)
होरा-जिस विभाग में मानव मात्र का उसके जन्म सम्बन्धित काल के आधार पर ग्रहों एवं नक्षत्रों की स्थिति वशात् उसके जीवन सम्बन्धित शुभाशुभ फलों का विस्तृत विवेचन किया जाता है उसे होरा कहते हैं। इसको जातकशास्त्र भी कहते हैं।
अहोरात्र(Day and Night)
अहोरात्र का अर्थ है दिन और रात जिसमें शुरू का अ और अन्त का त्र हटा देने से होरा बनता है। यह मानवजीवन का पथ प्रदर्शक है। होरा स्कन्ध में जातक ग्रन्थ, ताजिक ग्रन्थ, पंचांग निर्माण ग्रन्थ, लघुजातक, मुहूर्त ग्रन्थ, एवं प्रश्न ग्रन्थ प्रमुख हैं।
ज्योतिष विज्ञान के प्रारम्भिक आचार्य(Early Acharyas) जिनसे यह ज्ञान प्रसारित हुआ
सूर्य(Surya)
पितामह(Pitamaha)
वाराहमिहिर ने अपनी पंचसिद्धान्तिका में सूर्यसिद्धान्त का वर्णन किया है। इससे अलग भी एक सूर्यसिद्धान्त नामक ग्रन्थ उपलब्ध है जिसमें कहा गया है कि सत्ययुग के अन्त में मय दानव ने भगवान सूर्य की तपस्या की और उसकी तपस्या से प्रसन्न होकर सूर्य ने अपने अंश पुरूष द्वारा मय दानव को ग्रहगणित का सम्पूर्ण ज्ञान दिया |
वाराहमिहिर ने पंचसिद्धान्तिका में पितामह सिद्धान्त का भी वर्णन किया है। सूर्यसिद्धान्त में पितामह शब्द आया है जो निम्न है
सूर्यः पितामहो व्यासो वसिष्ठोऽत्रिः पराशरः।कश्यपो नारदो गर्गो मारीचिर्मनुरङ्गिराः॥
लोमशः पुलिशश्चैव च्यवनो यवनो भृगुः।शौनकोऽष्टादशश्चैते ज्योतिःशास्त्रप्रवर्त्तकाः॥
व्यास(Vyasa)
वशिष्ठ(Vashishtha)
पौराणिक वर्णनों के अवलोकन से प्रतीत होता है कि व्यास किसी व्यक्ति का नाम नहीं है बल्कि यह एक पदनाम है जैसे कि एक्सियन एक पदनाम है, किसी विभाग का अवर अभियन्ता एक पदनाम अथवा डेजिगनेशन है वैसे ही व्यास भी एक पदनाम है। प्रत्येक युग के आदि में ईश्वरीय प्रेरणा से पुराणों का सविस्तार से वर्णन करने वाले को व्यास कहा जाता है।
अत्रि(Atri)
ज्योतिष विज्ञान ही नहीं वेदों और अन्यान्य ग्रन्थों में वशिष्ठ का वर्णन बारम्बार आया है। वशिष्ठ सिद्धान्त, योग वाशिष्ठ, संहिता और होरा आदि। वर्तमान में वशिष्ठ संहिता और वृद्ध वशिष्ठ संहिता नामक दो ज्योतिषीय ग्रन्थ मिलते हैं।
पराशर(Parashara)
विभिन्न जगहों पर अत्रि का नाम आया है जिनको ग्रहणादि विषयों में विशेष दक्षता प्राप्त थी। ऋषि अत्रि ने ज्योतिष में चिकित्सा ज्योतिष पर कार्य किया, इनके द्वारा लिखे गये. सिद्धांत आज चिकित्सा ज्योतिष में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते है| इसके साथ ही अत्री संहिता की रचना हुई, महर्षि अत्रि को मंत्र की रचना करने वाले और उसके भेद को जानने वाला भी कहा गया है|
पराशर द्वारा लिखित लघु पराशरी, मध्य पराशरी, वृहत्पराशर होराशास्त्र नाम के तीनों होरा शास्त्रीय ग्रन्थ आज भी उपलब्ध हैं और सुप्रसिद्ध है।
नारद(Narad)
गर्ग(Garga)
नारदसंहिता के नाम से कुछ मातृकाएँ उपलब्ध हैं और इनका प्रकाशन भी हुआ है इसके अलावा नारदपुराण में भी ज्यातिष विज्ञान का वर्णन है।
गर्ग संहिता नामक ग्रन्थ सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय से प्रकाशित है। इसके अतिरिक्त भट्टोत्पलटीका में अनेक स्थलों पर गर्ग के वचनों का उल्लेख मिलता है जो बहुत ही महत्वपूर्ण है।
मनु(Manu)
भृगु(Bhrigu)
मनु द्वारा रचित मनुस्मृति में भी ज्योतिष सम्बन्धी बहुत सी बातों और तथ्यों का उल्लेख मिलता है।
भृगुसंहिता के अनेक संस्करण मिलते हैं जिनमें ज्योतिष विज्ञान का वर्णन है।
मरीचि(Marichi)
लोमश(Lomasha)
ज्योतिष में मरीचि का उल्लेख भी बहुतेरे स्थानों पर किया गया है।
पंचसिद्धान्तिका में से एक सिद्धान्त रोमक सिद्धान्त भी है जिसको लामशश सिद्धान्त माना जाता है।
पौलिश(Pulastya)
कश्यप(Lomasha)
पंचसिद्धान्तिका में पौलिश सिद्धान्त भी समाहित है जिसको पुलस्त्य ऋषि द्वारा रचित माना जाता है और उसको ही पौलिश सिद्धान्त कहा जाता है।
कश्यप, अंगिरा एवं च्यवन का उल्लेख प्रवर्तक के रूप में किया गया है परन्तु उनके अलग से ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। उनका उल्लेख बार-बार आया है इससे ऐसा लगता है कि अध्यापन, वेध और अन्य प्रकार के प्रयोगों में दक्ष होने के कारण ये आचार्य प्रवर्तक के रूप प्रसिद्ध हुए हैं।
यवन(Yawana)
शौनक(Shaunaka)
ज्योतिष सम्बन्धी यवन जातक, वृद्धयवन जातक आदि ग्रन्थ उपलब्ध हैं।
- शौनक-का उल्लेख प्रवर्तक के रूप में किया गया है परन्तु उनके अलग से ग्रन्थ उपलब्ध नहीं हैं। उनका उल्लेख बार-बार आया है इससे ऐसा लगता है कि अध्यापन, वेध और अन्य प्रकार के प्रयोगों में दक्ष होने के कारण ये आचार्य प्रवर्तक के रूप प्रसिद्ध हुए है।
ज्योतिष और शिव(God Shiva and Astrology)
वेद, उपनिषदों और पुराणों के अनुसार समस्त विद्याओं और ज्ञान के मूल ज्ञाता भगवान शिव को माना जाता है। जैसा कि दुर्गाशप्तशति के कीलक पाठ में वर्णित है विशुद्ध ज्ञान देहाय त्रिवेदी दिव्य चक्षुसे। श्रेयः प्राप्ति निमित्ताय नमः सौमार्द्धधारिणे।। जिसका अर्थ है कि जिनका शरीर ही विशुद्ध ज्ञान है ऐसे शिव की बात की गई है।समस्त विद्याओं को सर्वप्रथम शिवजी ने शक्ति को प्रदान किया तत्पपश्चात् ऋषियों ने क्रम से इस ज्ञान को ऋषि परम्परा से आगे बढ़ाया और आज भी यह प्रतिष्ठित है।श्रीरामचरित मानस और रामायण महाकाव्य में भी शिव द्वारा ही कथा कहने की बात कही गई है।
ज्योतिष को वैज्ञानिक क्यों माने?(Astrology and Science)
ज्योतिष को वैज्ञानिक मानना पड़ेगा यह मैं नहीं कह रहा हूँ। बल्कि आपको उसको वैज्ञानिक मानने पर मजबूर होना पड़ेगा यदि आप उस शास्त्र अथास सागर की गहराई में उतरकर एक बार गोता लगा कर आ गये तो! आईए जानते हैं कि ज्योतिष में किन विषयों को सम्मिलित किया गया है। क्योकि पूरे शास्त्र को पढ़ने के पहले ही यदि उसके अन्दर कौन सी बातें और कौन सा विज्ञान छिपा है उसके विषय में हल्का सा भी पता चल जाये तो पढ़ने वाले की रूचि उसके प्रति बढ़ जाती है।
ज्योतिष विज्ञान में-सामाजिक विज्ञान है।(Social Science)
भारतीय ज्योतिष ब्रह्माण्ड में होने वाली विभिन्न खगोलीय घटनाओं की विस्तृत व्याख्या ही नहीं करता है बल्कि उसके प्रभावों को कैलकुलेशन्स से सिद्ध करता है। और उसके प्रभावों को समाज में रह रहे व्यक्ति विशेष और समाज विशेष पर उन प्रभावों के कारण हो रहे बदलावों को दर्शाता है। भारत में ज्योतिष केवल व्यक्तिगत कुंडली तक ही सीमित नहीं है; इसका विस्तार सामाजिक संरचनाओं समाज में हो रहे तरह-तरह के तीज-त्योहार और सेलिब्रेशन्स पर भी पड़ता है। उदाहरण के लिए, ज्योतिष शास्त्र में मुहूर्त की अवधारणा शादियों, व्यावसायिक उद्यमों और राजनीतिक कार्यक्रमों सहित विभिन्न कार्यों के लिए शुभ समय निर्धारित करती है। कार्यों को सकारात्मक ब्रह्मांडीय ऊर्जाओं के साथ जोड़कर देखा जाता है। ज्योतिष किसी व्यक्ति और समाज की सफलता को बढ़ाने और बाधाओं को कम करने का प्रयास करता है।
प्राचीन भारतीय शासक युद्ध, आर्थिक नीतियों जैसे शासन के मामलों में मार्गदर्शन के लिए अक्सर ज्योतिषियों से परामर्श लेते थे। भारतीय समाज में सामाजिक मानदंडों, रीति-रिवाजों और रिश्तों को आकार देने में ज्योतिष महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। उदाहरण के लिए, विवाह अथवा कोई सम्बन्ध अनुकूल रहेगा या नहीं का आकलन करने के लिये। विवाह से पहले कुंडली मिलान एक आम प्रथा है। ज्योतिष स्वास्थ्य और कल्याण से संबंधित मान्यताओं और प्रथाओं को प्रभावित करके सामाजिक विज्ञान के साथ जुड़ता है। वराहमिहिर द्वारा रचित बृहत संहिता में शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने के लिए ज्योतिषीय उपायों का उल्लेख है।
ज्योतिष में भौगोलिक शास्त्र भी सम्मिलित है।(Geography)
जिसमें विभिन्न स्थलों, नदियों, पर्वतों, खास-खास स्थानों पर मौसम और ग्रहों में बदलाव से उनके प्रभावों का वर्णन विस्तार से दिया गया है। नकारात्मक प्रभावों को दूर करने के उपाय भी दिये गये हैं।
वास्तुशास्त्र तथा कला-सामुद्रिक शास्त्र व हस्तरेखा विज्ञान(Palmistry)
शरीर के सभी अंगों के लक्षण व उनके द्वारा भूत-वर्तमान-भविष्य के विषय में लाभ और हानि को इसमें सम्मिलित किया गया है जिसके द्वारा शरीर के अंगों का विधिपूर्वक अध्ययन करते हुए व्यक्ति के भविष्य और उसकी बाधाओं को दूर करने के उपायों को बताया गया है। हस्तरेखा विज्ञान में हाथ की रेखाओं के अध्ययन से 3 कालों का ज्ञान प्राप्त कर बताया जाता है।
ज्योतिष में वृष्टि विज्ञान-भूजल का ज्ञान (Rainfall Science)
कीटों और वृक्षों की स्थिति आदि द्वारा भूगर्भ में जल शिराओं का ज्ञान दकार्गलध्याय में किया गया है कि जल कितनी मात्रा में है?लवण्युक्त है अथवा मीठा जल है?कितनी दूरी पर है?विषक्त है अथवा स्वास्थ्यवर्द्धक है?
ज्योतिष में दर्कागल का अर्थ
आदि आचार्यों ने यह अपने अनुभव और सूक्ष्म ज्ञान से यह जान लिया था कि जिस प्रकार से शरीर में रक्त की शिराएँ होती हैं वैसे ही धरती में जल की शिराएँ/धाराएँ होती हैं और उन जल शिराओं से जल का संग्रहण भी होता रहता है भूमि में जल के इस प्रकार के संग्रहण का ज्ञान जिस विधि से होता था उसको दर्काल कहते हैं
दर्कागल के बारे में और अधिक जाने नीचे आर्टिकल पर क्लिक करें
ज्योतिष में कृषि विज्ञान(Agricultural Sciences)
किस प्रकार के फसलों की वृद्धि किस काल में किस मूहूर्त में होती है?उनका संवर्द्धन किस समय होता है?उनकी अभिवृद्धि कब होती है?कब और किस मुहूर्त में उनका क्षय हो जाता है? आदि का ज्ञान कृषि विज्ञान में किया जाता था।
ज्योतिष में खगोल शास्त्र(Astronomy)
ग्रहों का संचार,ग्रहण,ग्रहयुद्ध,सप्तर्षि आदि विभिन्न ग्रहों और नक्षत्रों की चाल आदि और उनकी विभिन्न राशियों में जाने के फलाफल आदि का वर्णन इतने स्पष्ट रूप से किया गया है जिसका अनुमान लगा पाना आज सम्भव नहीं है। और यह बिना किसी कम्प्यूटर अथवा बिना किसी मशीन के किया गया है।
ज्योतिष में राशि(Constellation)
ग्रहों और नक्षत्रों के अध्ययन के लिये आचार्यों ने समस्त ज्योतिष्चक्र को 27 भागों में विभाजित किया। इनको नक्षत्र कहा गया। हमको ज्ञात है कि 27 नक्षत्र हैं। उनमें से प्रत्येक नक्षत्र को और 4 भागों में विभाजित किया गया हैं। जिससे कुल 108 भाग हुए और उन भागों को 12 भागों में विभाजित किया गया जिसमें 9 पाद वाले एक भाग को राशि कहा गया।
ज्योतिष विज्ञान में आपदायें, पूर्वानुमान तथा उपाय(Disaster,Forecast,Remedies)
मौसम के बदलाव की भविष्यवाणियाँ और आपदाओं से बचाव आदि। यहाँ तक कि आचार्य वाराहमिहिर ने भूकम्प के विषय में एक विशेष अध्याय ही बृहत्संहिता में दिया है जिसमें भूकम्प के 4 विभिन्न प्रकार भी बताये हैं।
ज्योतिष विज्ञान में वृक्षायुर्वेद और पादप विज्ञान(Botany)
आपको जानकर हैरानी होगी कि आज कम्प्यूटर युग में जब चीजें आसान हो गई हैं तो मानव को तो कोई पूछता ही नहीं है तो वृक्षों की बात ही कौन करे और क्यों करे? किसके पास इतना समय है? वर्ष में एक बार वृक्ष दिवस जैसे त्योहार मना लीजिए और वृक्षारोपण कार्यक्रम का हिस्सा बनिये बस हो गया वृक्षों का संरक्षण|
ज्योतिष विज्ञान के वैज्ञानिकों/ऋषियों को वृक्षों के महत्व का पता था जिससे कि उन्होंने वृक्षायुर्वेद से सम्बन्धित विस्तृत वर्णन किया है। इन ग्रन्थांे में वृक्षायुर्वेद, उनके रोग, रोगों के प्रकार और उनकी चिकित्सा भी बताई गई है।
इसके अलावा यूट्यूब पर आज हम विभिन्न मशीनों को देखते हैं कि किस प्रकार से वृक्षों को एक स्थान से जड़ सहित उनको उखाड़कर अन्यत्र स्थानों पर पुनः रोपित कर दिया जाता है।
जिस समय मशीने नहीं थी उस समय के ग्रन्थों में इसी प्रकार का वर्णन मिलना अपने आप में एक आश्चर्य है और उसको इस प्रकार से रोपित करने की विधि कि उसके पत्ते उसी अवस्था में रहें जिस अवस्था में वह रोपने के पहले थे।
कुछ ऐसे बीजों को उगाने और उनको संरक्षित रखने की विधियाँ जिनका अंकुरण आसानी से नहीं होता है।
ज्योतिष और स्वास्थ्य, रोग और उनकी औषधियों का विशद वर्णन(Health Sciences)
विविध रोग और उनके नाश के लिये उपाय कान्दर्पिका नामक रचना में तथा विविध चूर्णांे के निर्माण की विधि संहिता ग्रन्थों में वर्णित की गई हैं।
ज्योतिष विज्ञान और आहार विज्ञान, पेय(Food & Drinks)
संहिता ग्रन्थों में विभिन्न प्रकार के भोजन और पेय पदार्थों, मसालों आदि का वर्णन भी किया गया है। इसमें किस मौसम में क्या खाना और पीना है। वायु-पित्त और कफ के शरीर में वृद्धि अथवा ह्रास से कौन से रोग हो जाते हैं उनके उपचार क्या हैं आदि का विस्तार से वर्णन किया गया है।
ज्योतिष और विविध विषय(Misc)
इसके अलावा-वस्त्रादि-आभूषणादि, सुगन्ध द्रव्य और स्नानागार की सामग्री-आवश्यक गृह उपकरण-पुष्प(विभिन्न पुष्पों का वर्णन कुसुमलताध्याय में वृहद्रूप मंें वर्णन किया गया है।)-कला तथा कुटीर(आर्टस एण्ड क्राफ्ट्स)(विभिन्न प्रकार के कुटीर कलाओं का वर्णन और विशिष्ट कार्य करने वालों की विशिष्ट संज्ञा)-अर्थशास्त्र-आभूषण विज्ञान(विभिन्न प्रकार के रत्न और उनकी प्राप्ति स्थान का विशद् वर्णन)-मापन विज्ञान-मुद्रा विनिमय(विभिन्न धातुओं और मुद्रा टंकण की विधियाँ, मुद्रा रूप हो सकने वाली विभिन्न वस्तुओं का वर्णन)-संगीत और चित्र कला-दर्शन जैसे कर्मवाद,पुनर्जन्मवाद,सृष्टि आदि-धर्मशास्त्र-न्यायशास्त्र जिसमें दण्ड आदि के विशद वर्णन हैं।
अन्त में(Conclusion)
ज्योतिष विज्ञान ज्ञान का अथाह सागर है। जिसमें आप जितना अधिक गोता लगायेंगे उतना ही उसको कम जानते हुए पायेंगे। आपने देखा कि कैसे जीवन और ब्रह्माण्ड के सभी पहलुओं को इस विज्ञान में सम्मिलित किया गया है। शायद ही कोई कोना अवशेष अथवा अछूता रह गया हो। मानव जीवन के साथ यह विज्ञान जीवन के पहले और जीवन के बाद के फल का वर्णन भी समुचित प्रकार से करता है।और अंत में हम यह निष्कर्ष निकाल सकते हैं कि भारतीय ज्योतिष ने लगभग सभी प्रकार की विद्या या ज्ञान को अपने आप में समाहित किया है| उदाहरण के तौर पर जीवन, विज्ञान, मानविकी, सामाजिक, वनस्पति विज्ञान, चिकित्सा और विभिन्न अन्य विषयों के विशद ग्रन्थ इसका प्रमाण है।
यह केवल ग्रहों की स्थिति के आधार पर भविष्य की घटनाओं की भविष्यवाणी करने पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है, बल्कि ब्रह्मांड की ऊर्जा और उसके तीनों कालों में प्रभाव की व्याख्या करता है| वैदिक ग्रंथों में खगोल विज्ञान, गणित और ब्रह्मांड विज्ञान के संदर्भ प्राचीन भारतीय विद्वानों की उन्नत वैज्ञानिक समझ को उजागर करते हैं। इसके अलावा, ज्योतिषीय व्याख्याओं में वनस्पति ज्ञान, औषधीय प्रथाओं और सामाजिक सिद्धांतों का समावेश यह दिखाता है कि हमारी समझ का लेवल क्या था | बृहत पराशर होरा शास्त्र, बृहत् जातक और सारावली जैसे ग्रन्थ ज्ञान के भंडार के रूप में आज भी मौजूद हैं , जो न केवल खगोलीय घटनाओं में अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं बल्कि कृषि से लेकर शासन तक के मामलों पर मार्गदर्शन भी प्रदान करते हैं।
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- Surya Sidhant
- Lal Kitab
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