Table of Contents
Toggleरत्न (Gem) और उनके प्रभाव जो आप को सब कुछ दे सकते हैं |
- रत्नों (Gems) का संक्षिप्त परिचय और उनका अर्थ
- रत्नों (Gems) की प्राप्ति
- जीवों द्वारा मनुष्यों के उपकार के लिए रत्नों (Gems) का वरदान
- 9 मुख्य रत्न (Gem) का संक्षिप्त परिचय
- लहसुनिया (Cats Eye)
- माणिक (Ruby)
- मोती (Pearl)
- मूंगा (Coral)
- हीरा (Diamond)
- पन्ना (Emerald)
- नीलम (Blue Sapphire)
- पुखराज (Yellow Sapphire)
- गोमेद (Hessonite Stone)
- स्वर्गलोक की 4 मुख्य मणियाँ और उनका परिचय
- रुद्रमणि (Rudramani)
- स्यमन्तकमणि (Syamantakmani)
- चिन्तामणि (Chintamani)
- कौस्तुभमणि (Kaustubhmani)
- पाताल लोक की मणि और उसका परिचय
- सर्पमणि (Sarpmani)
- रत्नों (Gems) का मनुष्यों पर प्रभाव
- ऊर्जा संरक्षण का नियम का रत्नों (Gems) से सम्बन्ध
- ग्रहों की रश्मियों/किरणों का मनुष्य पर प्रभाव का वैज्ञानिक चिन्तन
- ग्रहों की रश्मियों में विभिन्न क्षमता का होना
- ग्रहों की रश्मियों के अनोखे रंग
- रेडियो (Radio) में ऊर्जा रूपांतरण का उदहारण (Example) से रत्नों की ऊर्जा का विवरण
रत्नों (Gems) का परिचय
ज्योतिष विज्ञान में रत्नों का बहुत ही ज्यादा महत्व है। रत्न शब्द का अर्थ ही है श्रेष्ठ और श्रेष्ठ अच्छी से अच्छी वस्तु अथवा पदार्थ को कहते हैं।
रत्नों (Gems) की प्राप्ति
रत्नों का की प्राप्ति दो प्रकार से होती है। धरती माता की गोद से विभिन्न रासायनिक प्रक्रियाओं से गुजरकर विभिन्न प्रकार के रत्नों का निर्माण हो जाता है।जीवों के उपकार के फलस्वरूप हमको रत्नों की प्राप्ति होती है।
धरती माता की गोद से रत्नों (Gems) की उत्पत्ति
मोती और मूँगा या प्रवाल के अलावा सभी प्रकार के रत्नों की उत्पत्ति धरती माता की गोद से होती है। मोती और मूँगा की उत्पत्ति समुद्री जीवों द्वारा की जाती है।
9 मुख्य रत्न (Gems)
लहसुनिया (Cats Eye) केतु की ख़राब ग्रह दशा को ठीक करने के लिए |
माणिक (Ruby) सूर्य की खराब दशा को ठीक करने के लिए |
मोती (Pearl) चन्द्रमा की ख़राब दशा और मन को शांत करने के लिए |
मूंगा (Coral) मंगल की ख़राब दशा को व्यवस्थित करने के लिए |
हीरा (Diamond) शुक्र को मजबूत करने के लिए |
पन्ना (Emerald) बुध को मजबूत बनाने के लिए |
नीलम (Blue Sapphire) शनिदेव को बलवान बनाने के लिए |
पुखराज (Yellow Sapphire) वृहस्पति के लिए |
गोमेद (Hessonite Stone) राहू के लिए |
स्वर्गलोक की मुख्य 4 मणियाँ
रुद्रमणि (Rudramani) नाम से ही स्पष्ट है कि भगवान् भोलेनाथ इसको धारण करते हैं |
स्यमन्तकमणि (Syamantakmani) इंद्र की मणि |
चिन्तामणि (Chintamani) ब्रह्मा जी की मणि |
कौस्तुभमणि (Kaustubhmani) भगवान् विष्णु धारण करते हैं |
पाताललोक की मणि
सर्पमणि (Sarpmani) पाताल लोक की मणि जो कि वासुकी नाग के पास होती है |
रत्नों (Gems) का मनुष्यों पर प्रभाव
सभी ग्रह और नक्षत्र साथ ही यह पृथ्वी गतिशील हैं। सभी वस्तुओं का निर्माण ऊर्जा से हुआ है। ऊर्जा के अनुपात के अलग-अलग मिलने से ही भिन्न-भिन्न वस्तुओं का निर्माण होता है।
ऊर्जा संरक्षण नियम
ऊर्जा के संरक्षण का नियम कहता है कि ऊर्जा का न तो क्षय किया जा सकता है और न ही ऊर्जा का निर्माण ही किया जा सकता है।
ग्रहों की किरणों पर वैज्ञानिक चिन्तन
ऊर्जा का एक रूप ग्रहों, तारों और विभिन्न पिण्डों से परावर्तित किरणें भी हैं। और किरणों को प्रभाव ब्रह्माण्ड के अलग-अलग हिस्सों से जब पृथ्वी पर पड़ता है तो पृथ्वी पर उसका अप्रत्यक्ष रूप से अथवा प्रत्यक्ष रूप से प्रभाव पड़ता है।
यह प्रभाव सूक्ष्म हो सकता है अथवा स्थूल हो सकता है। दिखाई दे सकता है और अदृश्य प्रभाव भी हो सकता है। लेकिन ऊर्जा के संरक्षण के सिद्धान्त से यह बात तो क्लियर हो गई कि किरण रूपी ऊर्जा का क्षय नहीं होता है और वह प्रभाव डालती है।
ज्योतिष विज्ञान में इन्हीं किरणों के प्रभाव को देखा जाता है कि किसी बालक के जन्म के समय किसी आकाश में चलायमान ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति किस-किस राशि में रहा था।
यह प्रक्रिया किसी ग्रह का किसी राशि में जाना और पुनः उससे किसी अन्य में चले जाना एक प्रक्रिया है जो कि सृष्टि के आरम्भ से ही गतिशील है। इसको हमारे ऋषि जानते थे। और वही प्रक्रिया बार-बार हो रही है जिसका प्रभाव यहांँ पृथ्वी पर चारों तरफ हो रहा है।पृथ्वी पर इसका कुछ प्रभाव आसानी से मौसम आदि के रूप में आपको दिखाई देता है लेकिन जिस बालक का जन्म हो रहा है वह आपको क्या बता सकता है? पृथ्वी के साथ ही साथ उस बालक पर भी इसका प्रभाव पड़ता है। और उन विशेष ग्रहों के प्रभाव से बालक जीवन भर प्रभावित रहता है।
ग्रहों की रश्मियों में विभिन्न क्षमता का होना
सभी ग्रहों से अलग-अलग प्रकार की किरणें निकलती हैं। यह तो आप जानते हैं और विज्ञान भी स्वीकार करता है कि विभिन्न प्रकार के तत्व विभिन्न ग्रहों और पिण्डों पर पाये जाते हैं।
उन पदार्थों से ही जीवन का निर्माण हुआ है। उन पदार्थों की कमी अथवा अधिकता के कारण विभिन्न प्रकार के रोग, अपंगता आदि देखने में आते हैं। और उन्हीं की कमी अथवा अधिकता को दूर कर देने से रोग भी समाप्त हो जाता है।
ग्रहों और पिण्डों से आती हुई किरणें बालक के अथवा किसी व्यक्ति के शरीर में अधिक अथवा कम प्रभावित करती हैं जिससे कि वह उनसे होने वाले सूक्ष्म रासायनिक प्रभाव, दैविक प्रभाव अथवा अतिसूक्ष्म प्रभाव से सुख अथवा दुःख का अनुभव करता है।
उन्हीं किरणों की कमी अथवा अधिकता को ज्योातिष विज्ञान ग्रहों और नक्षत्रों की स्थिति का अध्ययन कर और उनकी गणनाओं से शुभ और अशुभ फल बताते हैं तथा उपचार के लिये विभिन्न रत्नों को धारण करने के लिये सुझाव देते हैं।
ग्रहों की रश्मियों के अनोखे रंग
सभी ग्रहों में व्याप्त रश्मियों के रंग भी अनोखे होते हैं। जैसे सूर्य और चन्द्रमा की किरणों में अन्तर है वैसे ही अन्य ग्रहों और पिण्डों द्वारा विसर्जित अथवा परावर्तित किरणों में अन्तर है। उनके प्रभाव में अन्तर है।
रंग विज्ञान के हिसाब से सभी रंगों के अनुपात में कमी और अधिकता के कारण अलग-अलग रंग बनते हैं। मुख्य तीन रंग होते हैं,लाल, नीला और पीला इसके अलावा दो रंग सफेद और काला इन्हीं पाँच रंगों के अनुपात में अन्तर से अन्य अलग-अलग प्रकार के रंग बनते हैं।
सूर्य की किरणों में लाल, चन्द्रमा में नारंगी, मंगल में पीला, बुध में हरा, वृहस्पति में आसमानी, शुक्र में नीला और शनि में बैंगनी रंग की अधिकता होती है।
एक ऊर्जा (Energy) विभिन्न रूपांतरण
जैसे रेडियो का एण्टिना सेक्शन रेडियों तरंगों को अपनी ओर आकृष्ट करता है और रेडियो तरंगों को विद्युतीय तरंगों में बदलकर रेडियों के अन्दर लगे हुए इण्टरमीडिएट फ्रिक्वैन्सी ट्रान्सफॉर्मर से होते हुए ऑडियो सेक्शन द्वारा गुजरकर लाउडस्पीकर विद्युतीय तरंगों को बदलकर ध्वनि तरंगों में बदलकर हमको सुनाई देता है।
ठीक उसी प्रकार से अलग-अलग रत्न अपने-अपने अधिकार क्षेत्र के ग्रहों और पिण्डों की रश्मियों से आती हुई किरणों को अपने अन्दर अवशोषित करती हैं तथा उसने गुजरकर जिसने उसको धारण कर रखा है उसके शरीर पर अपना प्रभाव दिखाती हैं।
व्यक्ति का जो ग्रह कमजोर होता है जिससे मनुष्य मानसिक और शारिरिक कष्ट पा रहा होता है उसको मानसिक और शारिरिक रूप से सबल बनाती हैं।
अलग-अलग ग्रहों का प्रभाव शरीर के अलग-अलग हिस्सों पर पड़ता है | यदि किसी के ग्रह कमजोर हैं तो व्यक्ति आलसी, असफल, धनहीन, हो जाता हैं और यही ग्रह उच्च स्थिति में हो जाने पर व्यक्ति को सुख , भोग और सभी खुशियाँ दे देते हैं |
ग्रहों के उन प्रभावों को रत्न उन्हीं के किरणों को अवशोषित करके कम करते हैं और मनुष्य को उनके बुरे प्रभाव से बाहर लाते हैं उसको सबल बनाते हैं।