कर्मफलदाता शनि जो आपको राजा और रंक दोनो बना सकते हैं।

Table of Contents

कर्मफलदाता शनि जो आपको राजा और रंक दोनो बना सकते हैं।

 

  • शनि का संक्षिप्त परिचय

  • शनि का उच्च अथवा नीच होना

  • शनि का जन्म

  • शनि का अपने ही पिता से शत्रुता का कारण

  • शनि का नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान का होना

  • प्रथम भाव में शनि का प्रभाव

  • द्वितीय भाव में शनि का प्रभाव

  • तृतीय भाव में शनि का प्रभाव

  • चतुर्थ भाव में शनि का प्रभाव

  • पंचम भाव में शनि का प्रभाव

  • षष्ठम भाव में शनि का प्रभाव

  • अष्टम भाव में शनि का प्रभाव

  • नवम भाव में शनि का प्रभाव

  • दशम भाव में शनि का प्रभाव

  • एकादश भाव में शनि का प्रभाव

  • द्वादश भाव में शनि का प्रभाव

शनि का संक्षिप्त परिचय

ज्योतिष में शनि का बहुत ही बड़ा रोल है। ज्योतिष विज्ञान में कोई कर्मों का फल देता है तो वह हैं शनि और इसिलिये इनको कर्मफलदाता भी कहा जाता है। कर्मफलदाता के साथ-साथ बहुत ही आश्चर्य की बात यह है कि इनको पिता को दुःख देने वाला कहा जाता है। 

हर राशि का स्वामी कोई न कोई ग्रह होता है और इसी तरह   
मकर    और   कुम्भ  राशि का स्वामी शनि है। मेष राशि के लिये शनि नीच का माना जाता है। राशि के नीच हो जाने के कारण व्यक्ति के जीवन में बहुत सी कठिनाइयाँ आती हैं जिससे कि व्यक्ति परेशान हो सकता है। 

और यही शनि तुला राशि में उच्च देखा जाता है। जिससे वह व्यक्ति सहज रूप में ही सफल हो जाता है। उसकी परेशानियां दूर हो जाती हैं। अथवा भयंकर परेशानी में होने के बाद भी बच कर आ जाता है।

चूँकि शनि सभी लोगों के जीवन को विशेष रूप से प्रभावित करता है इसलिए इस आर्टिकल में हम शनि के  कुण्डली  के समस्त  12 भावों के फल पर प्रकाश डालने का प्रयास करेंगे |

शनि का उच्च अथवा नीच होना

शनि अथवा किसी ग्रह विशेष के उच्च होने का अर्थ है कि जब वह किसी एक राशि विशेष में स्थित हो जाता है तब उसका बल बढ़ जाता है। उसका प्रभाव बढ़ जाता है।

इसी तरह से नीच होने का अर्थ है कि यदि काई ग्रह अपने उच्च राशि से ठीक 7 वीं राशि में चला जाये ता उसका बल या प्रभाव कम हो जाता है ऐसी स्थिति को नीच ग्रह की स्थिति कही जाती है।

अब यहीं समझने वाली बात है कि जब कोई ग्रह किसी भाव में नीच स्थिति में हो जाये तथा उसमें पहले से ही कोई और ग्रह भी विद्यमान हो लेकिन दोनों ही ग्रहों का प्रभाव एक दूसरे से विपरीत हो तो विषम स्थितियाँ पैदा होती हैं। व्यक्ति के जीवन में कठिनाइयाँ आ जाती हैं। और अशुभ परिणाम मिलते हैं, लेकिन यदि प्रभाव समान हों तो उसके फल शुभ प्राप्त होते हैं।



(विशेषः-ग्रह विशेष में कारण तत्व यदि विपरीत हुआ, उसके गुण धर्म स्थित होने वाले ग्रह के विपरीत हुए तो परिणाम अथवा फल अशुभ प्राप्त होते हैं जबकि यही स्थति उलट होने पर परिणाम शुभ हो जाते हैं। ज्योतिष में उच्च और नीच का अर्थ ऐसा नहीं समझा जाना चाहिये कि शनि ग्रह अथवा जिस ग्रह के सम्बन्ध में उच्च अथवा नीच की बात की जा रही है वह ग्रह नीच है अथवा उच्च है। यह बात उसके प्रभाव अथवा लाभ हानि से ही है)
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शनि का जन्म

शनि को सूर्य पुत्र कहा जाता है। उनके जन्म के सम्बन्ध में यह कथा है कि सूर्य का विवाह त्वष्टा की पुत्री संज्ञा से हुआ था। संज्ञा को सूर्य का ताप सहन नहीं होता था जिससे कि वह अपनी छाया को अपने समान बनाकर सूर्य के पास छोड़ दिया और खुद मायके चली गई। और छाया के गर्भ में जब शनि थे उस समय वह भगवान शंकर के ध्यान और पूजा-अर्चना में इतनी मग्न हो गईं कि उनको खाने-पीने का भी ध्यान न रहा और उसके प्रभाव से उनके पुत्र शनि का रंग काला हो गया।



(विशेष नोटः-ज्योतिष और पुराणोक्त कथाएँ काल्पनिक लग सकती हैं लेकिन तब तक जब तक कि आप उनका मनन सही तरीके से नहीं करते हैं अथवा आपको जानकारी ही नहीं है। आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि 22 फरवरी 1997 को डॉली नामक भेड़ का क्लोन बनाने की घोषणा की गई लेकिन इसको वैज्ञानिक प्रयोगशाला में 05 जुलाई 1996 को ही बना दिया गया था। इसका जन्म नहीं हुआ था बल्कि प्रयोगशाला में निर्माण किया गया था।)
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ऊपर कथा में संज्ञा ने छाया को सूर्य के पास छोड़ दिया और छाया प्रतिरूप ही तो होती है, क्लोनिंग का अर्थ प्रतिरूप ही है तो हो सकता है कि संज्ञा ने भी क्लोनिंग के द्वारा ही छाया का भी निर्माण किया हो। आज तरीका वैज्ञानिक और मशीनों के द्वारा है लेकिन उस समय यही तरीका कुछ और रहा हो।

शनि का अपने ही पिता से शत्रुता का कारण

संक्षेप में ही कथा में आगे है कि शनि के जन्म पर छाया ने उनको सूर्य को दिखाया तो श्यामवर्ण शनि को देखकर सूर्य ने कहा ये मेरा पुत्र हो ही नहीं सकता है। और तब से शनि अपने ही पिता से शत्रुता रखते हैं।

शनि का नवग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान का होना

शनि ने अपनी माता के अपमान का बदला लेने के लिये भगवान शिव की अराधना और पूजा-अर्चना की जिसपर भगवान भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उनको वरदान दिया कि तुम सभी नौ ग्रहों में सर्वश्रेष्ठ स्थान पर रहोगे। मानव ही नहीं बल्कि देवता भी तुम्हारे नाम से थर-थर काँपेंगे।

प्रथम भाव में शनि का प्रभाव

यदि शनि प्रथम भाव में अशुभ फल देने वाला है तो व्यक्ति रोगी, गरीब और बुरे कार्य करने वाला होता है। शनि के वक्री हो जाने पर व्यक्ति भाग्यवादी हो जाते हैं। उनके कार्य किसी अदृश्य और रहस्यमयी शक्ति से प्रभावित होते हैं। शनि की ही तरह वह व्यक्ति अपने ही पिता के प्रति आज्ञाकारी नहीं होता है अथवा अपने ही पिता के विरोध में हमेशा ही खड़ा रहता है।



(विशेष बातः-प्रथम भाव में शनि के होने तथा सूर्य के अवस्थित रहने शनि की विशेषता अन्धकार और सूर्य का प्रभाव अन्धकार के नाश के होने से विरोध होने के फलस्वरूप ऐसे व्यक्ति के जीवन पर उसका सुस्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है और जिसके कारण व्यक्ति अपने पिता से विरोधाभास बना ही रहता है।)
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आश्चर्य की बात यहाँ यह है कि ये लोग जिनके प्रथम भाव में शनि है इनको दुनिया से दूर होकर रहना और एकांतवासी होकर साधना में लगे रहते हैं अथवा एकान्त का सहारा लेकर ये अविष्कारक आदि हो सकते हैं। लेकिन वही शनि यदि शुभफलदाता हो एवं जिस भी व्यक्ति की कुंडली में प्रथम भाव में हो तब वह व्यक्ति राजा के समान जीवन जीने वाला होता है। वैसे ही धनु,   मकर,   कुंभ    और  मीन राशि में शनि वक्री होकर लग्न में स्थित हो तो जातक राजा या गांव का मुखिया भी होता है।

द्वितीय भाव में शनि का प्रभाव

शनि के द्वितीय भाव में होने पर वह फर्नीचर,लकड़ी,कोयला,लोहे अथवा इसी प्रकार के किसी और कार्य से कमाई करते हैं। ऐसे लोग बुद्धि के बली, दयानिधान और न्याय करने वाले होते हैं। ये अपने धन से पूरा आनंद लेते हैं लेकिन ऐसा नही है कि ये धर्मिक नहीं होते हैं बल्कि ये धार्मिक स्वभाव के होते हैं। 



(विशेष बातः-द्वितीय भाव में शनि के होने पर ऐसे व्यक्ति की वित्तीय स्थिति सातवें भाव में स्थित ग्रह पर निर्भर करती है)
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दूसरे भाव में शनि के होने पर व्यक्ति अपने परिवार से दूर जा सकता है। ऐसे व्यक्ति दूर देश की यात्रा करते हैं अथवा विदेश जाकर धनार्जन करते हैं। अक्सर उनके भाग्य का उदय अपने जन्म स्थान से दूर रहता है। ऐसे लोग झूठ बोलने, चंचल, बातूनी तथा दूसरों को मूर्ख बनाने में भी कुशल होते हैं।   

तृतीय भाव में शनि का प्रभाव

तृतीय भाव में शनि के रहने पर व्यक्ति बुद्धिमान और उदार तो होता है, लेकिन उसके शरीर में जड़ता और आलस्य बना ही रहता है, उसका मन भी हमेशा अशान्त रहता है। बह अपने जीवन में आलस्य के बाद भी बहुत ही संघर्ष करता है,कठोर परिश्रम से भी पीछे नहीं हटता है लेकिन फिर भी उसको असफलता ही हाथ लगती है और ऐसी स्थिति उसको बहुत पीड़ित करती हैं। उसके भाइयो से उसके सम्बन्ध तनावपूर्ण संबंध रहते हैं। तीसरे भाव में शनि के होने वाले व्यक्ति को अपने माता और पिता से बस आर्शीवाद ही मिलता है।   

चतुर्थ भाव में शनि का प्रभाव

चतुर्थ भाव का शनि व्यक्ति को घर से ही हीन कर देता है। ऐसे व्यक्ति की माता के साथ दो प्रकार की स्थितियाँ हो सकती हैं उसकी या तो माता नहीं होती है या माता का जीवन कष्टमय होता है। बचपन से ही ऐसे लोग रोगी होते हैं। शनि के चौथे भाव में होने पर व्यक्ति घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी नहीं निभा पाता और अंत में संन्यासी जैसा बन जाता है। 

किन्तु यदि चतुर्थ भाव में शनि तुलामकरवृश्चिक या कुंभ राशि का हो तो ऐसे व्यक्ति को पूर्वजों की संपत्ति प्राप्त हो सकती है।  प्रथम भाव में जैसे शनि होने पर व्यक्ति अपने पिता अथवा अभिभावक से विरूद्ध हो जाता है ठीक वैसे ही चतुर्थ भाव में भी व्यक्ति शनि के होने पर व्यक्ति के विचार और सोच एक दूसरे से विरुद्ध होते है। 



(विशेषः-चौथे भाव में शनि के होने से व्यक्ति के शरीर में पित्त तथा वायु विकार उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण व्यक्ति बचपन से ही इनसे सम्बन्धित रोगों से पीड़ित रहता है।)
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पंचम भाव में शनि का प्रभाव

शनि के पंचम भाव में वक्री होने पर उसके प्रेम संबंध जो होते हैं वह सुखयम होते हैं लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि शनि के प्रभाव के कारण वह अपने प्रेमी को धोखा दे देता है। प्रेमी ही नहीं वह अपने मित्रों से द्रोह करता रहता है। ऐसे व्यक्ति अपनी पत्नी एवं बच्चे की भी चिंता नहीं करता है। 

ऐसे लोग हमेशा भ्रमित रहते हैं और अपने जीवन में लगभग हमेशा ही भ्रमण करते रहते हैं। आपने नास्तिक लोगों को देखा होगा जो कि किसी भी प्रकार से अथवा किसी भी तर्क से ईश्वर के होने का विश्वास नहीं करते हैं पंचम भाव में शनि के होने वाले लोग भी ईश्वर में विश्वास नहीं रखते हैं। 

ऐसे लोगों को पेट(एब्डोमेन) की पीड़ा से होती रहती है। उसका दिमाग अस्त-व्यस्त रहता है और अनेकों प्रकार की बेकार बातें दिमाग में आती रहती हैं। यदि शनि उच्च का होकर पंचम भाव में स्थित हो जाता है तो व्यक्ति के पैरों को किसी भी तरह से कमजोर कर देता है। 

मेषसिंहधनु राशि में शनि पंचम भाव में होने पर व्यक्ति में अहम(इगो) हो जाता है। लेकिन ऐसे व्यक्ति अपनी बातों को गोपनीय रखते है।

षष्ठम भाव में शनि का प्रभाव

शनि यदि 6वें भाव में हो इसके साथ वक्री और निर्बल हो तो उससे व्यक्ति को रोग, शत्रु एवं कर्ज से भर देता है। लेकिन छठे भाव में शनि होने पर रात के समय शनि से सम्बन्धित कार्य करने पर हमेशा ही लाभ होता है। 

ऐसे व्यक्ति का विवाह 28 वर्ष के बाद हो तो जीवन में और अच्छे परिणाम मिलते हैं, सोने में सुहागा तब हो जाता है जब केतु अच्छी स्थिति में हो, केतु के अच्छी स्थिति में होने से व्यक्ति को धन, यात्रा में लाभ और बच्चों से सुख प्राप्त होता है। ऐसे व्यक्ति कामी, सुंदर, शूरवीर, अधिक खाने वाले, स्वभाव से कुटिल, शत्रुओं पर विजय प्राप्त करने वाले होते हैं।

सप्तम भाव में शनि का प्रभाव

सप्तम भाव में शनि बहुत अच्छा परिणाम देता है। सप्तम भाव में शनि के व्यक्ति को शनि से जुड़े कार्य और बिजनस जैसे मशीनरी और लोहे का काम बहुत ही लाभदायक होता है। व्यक्ति के सम्बन्ध अपनी पत्नी से कभी-कभी खराब हो जाते हैं और यदि वह अपनी पत्नी से अच्छे संबंध रखता है तो वह अमीर और समृद्धि के साथ उसकी आयु भी लंबी हो जायेगी तथा उसका स्वास्थ्य बहुत ही अच्छा रहेगा। सप्तम भाव में शनि के साथ बृहस्पति पहले भाव में हो तो व्यक्ति को सरकार से लाभ होता है। जातक व्यभिचारी हो जायेया शराब आदि का सेवन करने लगता है तो शनि अशुभ फल देने वाला हो जाता है।



(विशेषः-लग्न से सातवां भाव बुध और शुक्र से प्रभावित रहता है। और बुध और शुक्र दोनों ही ग्रह शनि के मित्र ग्रह हैं जिससे शनि इस भाव में व्यक्ति को बहुत ही अच्छा फल देता है।)
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अष्टम भाव में शनि का प्रभाव

लगभग सभी ग्रहों को आठवें भाव में शुभ नहीं माना जाता है। लेकिन शनि के आठवें भाव में होने पर व्यक्ति दीर्घायु होता है। व्यक्ति की आयु तो अधिक हो जाती है लेकिन उसके पिता की आयु कम हो जाती है। उसके भाई एक-एक करके उसके शत्रु बन जातेे हैं। 



(विशेषः-अष्टम भाव को शनि का हेड ऑफिस माना जाता है, किन्तु यदि बुध, राहू और केतु जातक की कुंडली में नीच हैं तो शनि शुभ फल नहीं देता है।)
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नवम भाव में शनि का प्रभाव

नवम भाव का शनि शुभकारी परिणाम देता है। ऐसे व्यक्तियों के पास तीन घर होते हैं। व्यक्ति सफल टूर ऑपरेटर या सिविल इंजीनियर होगा। वह एक दीर्घायु और सुखी जीवन जीएगा उसके माता-पिता का जीवन भी सुखी और आनंदमय होगा। ऐसे लोग सब लोगों की मदद करते हैं और इस भाव में शनि हमेशा अच्छा फल देता है। 



(विशेषः-नवम भाव में स्थित शनि व्यक्तिी की तीन पीढ़ियों को शनि के दुष्प्रभाव से बचाता है और ऐसे व्यक्ति के हाथ से सबका सहयोग करवाने को प्रेरित करता है।)
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दशम भाव में शनि का प्रभाव

दशम भाव का शनि भी अच्छा फल देता है। वह व्यक्ति को धनी, धार्मिक, राज्यमंत्री या उच्चपद पर बैठा देता है। ऐसे व्यक्ति तब तक धन और संपत्ति भरे पूरे रहते हैं,जब तक कि वह घर नहीं बनवाते हैं। ऐसे लोगों को सरकार से लाभ मिलते हैं। ऐसे लोग यदि एक जगह बैठ कर कार्य करें तो उनको अच्छा लाभ और अपने जीवन में आनंद मिलता रहेगा। दशम भाव का शनि वक्री हो तो वह व्यक्ति को वकील, न्यायाधीश, बैरिस्टर, मुखिया, मंत्री या दंडाधिकारी और कभी-कभी ज्योतिष बना देता है।



(विशेषः-दशम भाव शनि का अपना घर है। इस भाव में शनि लाभदायक होता है, और अच्छा फल देता है जिससे व्यक्ति के उच्च पद पर जाने के चान्सेज ज्यादा होते हैं।)
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एकादश भाव में शनि का प्रभाव

एकादश भाव का शनि व्यक्ति को चापलूस बनाता है। व्यक्ति के भाग्य का उदय 48 वें साल में होता है। ऐसे लोग कभी भी निःसंतान नहीं रहते हैं। ऐसे लोग चतुराई और छल से धनार्जन करने में माहिर होते हैं। इस भाव में राहु और केतु की स्थिति का अध्ययन भी करना चाहिये उनकी स्थिति के अनुसार अच्छा या बुरा परिणाम व्यक्ति को प्राप्त होगा। जिस व्यक्ति की कुंडली में 11 वें भाव में शनि हो तो वह दीर्घायु, धन से भरा-पूरा, कल्पनाशील, निरोगी और सभी सुख-सुविधाओं को प्राप्त करने वाला होता है। 

 

द्वादश भाव में शनि का प्रभाव

द्वादश भाव का शनि यदि हो जो व्यक्ति का कोई भी शत्रु नहीं होता है। शनि से व्यक्ति को लाभ होगा। उसके अनेक घर होंगे, परिवार और व्यापार में वृद्धि निरन्तर होती रहेगी। वह बहुत अमीर होगा। बाहरवें भाव में शनि तथा शराब आदि के व्यसनों के मेल होने पर व्यक्ति अशांत, पतित, बकवादी, कुटिल दृष्टि, निर्दय, निर्लज्ज, धन की बर्बादी करने वाला हो कर धन-धन्य से बरबाद हो जायेगा।



(विशेषः-ऐसे लोगों को शराब, नॉन-वेज आदि का सेवन नहीं करना चाहिये क्योंकि यदि ऐसे लाग शराब पीते हैं, नॉन-वेज का सेवन करते हैं तो उनका शनि नीच हो जायेगा और उनकी वृद्धि रूक जायेगी।)
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